आँख का पानी

प्रेमी ने कहा, सुनो प्रेयसी, मुझे तुम्हारी खिल-खिल बहती हँसी बहुत पसन्द है। ऐसे लगता है मेरे प्राण की बंसी पर तुम्हारी हँसी की फूंक से जीवन-संगीत उपजता है। जैसे पहाड़ी नदी की उन्मुक्त बहाव में लहरों का गान हो।

प्रेमी ने कहा, सुनो प्रेयसी, मुझे तुम्हारी दो आँखे दो मोती मनके लगते हैं, इनपर मैं भज सकता हूँ जीवन के सब गीत, अँधेरी राह के साथी लगते हैं। तुम हमेशा मेरी पीठ देखना, जबतक तुम मुझे देखोगी मैं माँ की गोद में सोये शिशु सा आश्वस्त रहूँगा।

प्रेमी ने कहा, सुनो प्रेयसी, मुझे तुम्हारे सारे भय, स्वप्न, आगत-विगत, प्राप्त-अलभ्य दे दो। मान-अपमान, अपकीर्ति-यश दे दो। कंठ के नीचे बने दो गह्वर दे दो जहाँ मुँह छिपाकर मैं भूल जाऊं जीवन की विसंगतियाँ।

एक दिन प्रेमी को उसकी हँसी नहीं भायी, उसकी  आँखों में उतरे चंपा के फूल बेरंग लगने लगे, उसकी गंध अजनबी लगी। प्रेमिका कुछ नहीं बोली, उसकी दाहिनी आँख से जल की एक महीन रेख बहकर गाल पर आयी। उसदिन से कहते हैं जल कुछ नहीं भूलता..

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