तुम और मैं💕

मैं खुल चुकी हूँ, 

मैं मुक्त हूँ, 
मैं उड़ रही हूँ 
तमाम बंदिशों को तोड़ देने के बाद ,
हाँ, मैं अब स्त्री  हूँ 

संपूर्ण  हूँ 
हूँ ना ? ..

ये हवा जो मुझे  छू रही है 
ये बारिश  की बूँदे  जो मेरे चेहरे पर 
गिर रही हैं  
 ये पेड़ो  की शाखों  से टूट कर गिरे पत्ते 
मेरे पैरों  के नीचे आ 
गुदगुदी कर रहे हैं 

 मैं जी रही हूँ 
 मैं पूरी हो रही हूँ 

 हो रही हूँ ना ?...

 मैं किसी नदी के किनारे  
एकांत ढूँढ रही हूँ 
 किसी बड़े से पत्थर पर बैठ
 बंद आँखों में अपने ईश्वर  को खोज रही हूँ 
 देह जर्जर , मन तपस्वी  

और कुछ  दिन ,
बस कुछ  और दिन ---- 

तुम्हारे  लिए  कोई गीत  प्रेम का गा रही हूँ 
किसी एक धीमी धीमी सी धुन पर नृत्य  करते करते 
बेसुध  हो रही हूँ 
 मैं अग्रसर हूँ मंत्रमुग्ध हो उस ओर
 जहाँ कोई  नीली सी रोशनी  है, गुलाबी से रास्ते हैं 

और  प्रेम निमग्न तुम और मैं हैं.…  



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