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आँख का पानी

प्रेमी ने कहा, सुनो प्रेयसी, मुझे तुम्हारी खिल-खिल बहती हँसी बहुत पसन्द है। ऐसे लगता है मेरे प्राण की बंसी पर तुम्हारी हँसी की फूंक से जीवन-संगीत उपजता है। जैसे पहाड़ी नदी की उन्मुक्त बहाव में लहरों का गान हो। प्रेमी ने कहा, सुनो प्रेयसी, मुझे तुम्हारी दो आँखे दो मोती मनके लगते हैं, इनपर मैं भज सकता हूँ जीवन के सब गीत, अँधेरी राह के साथी लगते हैं। तुम हमेशा मेरी पीठ देखना, जबतक तुम मुझे देखोगी मैं माँ की गोद में सोये शिशु सा आश्वस्त रहूँगा। प्रेमी ने कहा, सुनो प्रेयसी, मुझे तुम्हारे सारे भय, स्वप्न, आगत-विगत, प्राप्त-अलभ्य दे दो। मान-अपमान, अपकीर्ति-यश दे दो। कंठ के नीचे बने दो गह्वर दे दो जहाँ मुँह छिपाकर मैं भूल जाऊं जीवन की विसंगतियाँ। एक दिन प्रेमी को उसकी हँसी नहीं भायी, उसकी  आँखों में उतरे चंपा के फूल बेरंग लगने लगे, उसकी गंध अजनबी लगी। प्रेमिका कुछ नहीं बोली, उसकी दाहिनी आँख से जल की एक महीन रेख बहकर गाल पर आयी। उसदिन से कहते हैं जल कुछ नहीं भूलता..

मुस्कान

रात के 12 बजे ऊनींदे फ़ोन देखती हूँ। whatsapp में तुम्हारी तस्वीर है। नींद भरी आंखों में अचानक तुम्हारी मुस्कान पर ध्यान जाता है तो लगता है मेरे कान्हां जी क्या जी क्या ऐसे ही मोहिनी मुस्कान मुस्कियाते होंगे जो तुम मुस्कियाते हो,कुछ तो अंश है तुम्हारी मुस्कान में उनका भी... कुछ दिन पहले एक आर्टिकल पढ़ रही थी  कि महाभारत में कृष्ण की कास्टिंग उनकी स्माइल के कारण हुयी थी। यही सब अलाय बलाय सोचती हूँ  भीतर आधी आधी रात जाग के। क़सम से, इतना प्यार उमड़ा है कि लगा डूब जाऊँगी अब तो । मोह हुआ जाता है तुम्हारी हर बात से। जाने कब मिलोगे अब ..किस कहानी में मुकम्मल होगा शहर कोई। किस सपने में मिलोगे गले और चूमोगे माथा...कहोगे कि याद रहा मेरा बहुत कुछ तुम्हें। कविता की लय तुम...बीच नींद का जादू तुम...जीवन का सुकून तुम। सपना... सब कुछ सपना ही बस। ...

तुम और मैं💕

मैं खुल चुकी हूँ,  मैं मुक्त हूँ,  मैं उड़ रही हूँ  तमाम बंदिशों को तोड़ देने के बाद , हाँ, मैं अब स्त्री  हूँ  संपूर्ण  हूँ  हूँ ना ? .. ये हवा जो मुझे  छू रही है  ये बारिश  की बूँदे  जो मेरे चेहरे पर  गिर रही हैं    ये पेड़ो  की शाखों  से टूट कर गिरे पत्ते  मेरे पैरों  के नीचे आ  गुदगुदी कर रहे हैं   मैं जी रही हूँ   मैं पूरी हो रही हूँ   हो रही हूँ ना ?...  मैं किसी नदी के किनारे   एकांत ढूँढ रही हूँ   किसी बड़े से पत्थर पर बैठ  बंद आँखों में अपने ईश्वर  को खोज रही हूँ   देह जर्जर , मन तपस्वी   और कुछ  दिन , बस कुछ  और दिन ----  तुम्हारे  लिए  कोई गीत  प्रेम का गा रही हूँ  किसी एक धीमी धीमी सी धुन पर नृत्य  करते करते  बेसुध  हो रही हूँ   मैं अग्रसर हूँ मंत्रमुग्ध हो उस ओर  जहाँ कोई  नीली सी रोशनी  है, गुलाबी से रास्ते हैं  और  प्रेम निमग्न तुम और मैं हैं.…